CHATGPT क्या है जिससे Google को ख़तरा है
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आप लोग जो ये blog देख रहे हैं, चाहे नौकरी पेशा हो, बिज़नेस ओनर हो या स्टूडेंट, किसी न किसी ने कभी ना कभी ये जरूर सोचा होगा कि काश टीचर ने जो होमवर्क दिया है वो अपने आप ही हो जाए। आने वाले समय में ऐसा होने की संभावना भी है।
इसीलिए तो साल 2023 के शुरुआत में ही 5 जनवरी को टेस्ला और ट्विटर के मालिक ने एक ट्वीट किया, इट्स न्यू वर्ड गुड्बाइ होमवर्क।
इस ट्वीट के कई मायने निकाले गए।
आजकल आप एक ऑनलाइन टूल की चर्चा सुन रहे होंगे नाम है चैट जीपीटी।
ये टूल है। क्या? इसके बारे में चिंताएँ क्या है? इसे क्रिएटिविटी और गूगल तक के लिए खतरा क्यों कहा जा रहा है? आज हम इसी के बारे में बात करेंगे।
तो क्या है चैट जीपीटी 30 नवंबर 2022 को दुनिया में चैट जीपीटी यानी चैट जेनरेटिव फ्री ट्रेड ट्रांसफार्मर नाम के एक आर्टिफिशियल टूल ने डेब्यू किया।
इस सिस्टम को ओपन ए आई नाम की कंपनी के लिए साल 2015 में सैम अल्टमैन और एलन मस्क ने विकसित किया था। यह नया सिस्टम ऐसा कॉन्टेंट लिख सकता है जो बहुत ही सटीक होता है और इंसानों के लिखें जैसा ही प्रतीत होता है।
फ़िलहाल इस प्रोग्राम में कुछ कमियां भी देखी जा सकती है लेकिन वक्त के साथ यह टूल और स्मार्ट होता जाएगा। इसे पसंद करने वाले इसकी तारीफों के पुल बांध रहे हैं। लेकिन कुछ लोगों के मन में इस नए टूल को लेकर डर भी है। अगर आप इंटरनेट पर चैट जीपीटी के रिव्यु पढ़ेंगे तो बार बार खतरा शब्द का जिक्र मिलेगा। यानी लोगों का मानना है कि यह प्रोग्राम मानव मस्तिष्क को तेजी से कॉपी कर रहा है। अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स में हाल ही में छपे letter के मुताबिक लर्निंग शिक्षा, डिजिटल सुरक्षा, कामकाज और लोकतंत्र तक पर इस प्रोग्राम के असर की संभावना जताई गई है।
चट जीपीटी आपके हर प्रश्न का जवाब कुछ ही पलों में देता है। मसलन आप इस चैटबॉट से कहें कि शेक्सपियर के अंदाज में एक कविता लिखे। कुछ ही पल में आपको ये कविता लिखी हुई मिले गी कविता के स्तर पर बहस हो सकती है, लेकिन उसे लिखने की स्पीड पर नहीं। चैट जीपीटी लगभग 100 भाषाओं में उपलब्ध है लेकिन यह अंग्रेजी में सबसे सटीक है। लॉन्च होने के 5 दिन के भीतर ही चैट जीपीटी के 10,00,000 यूजर्स हो गए थे। ओपन ए आइ का कहना है कि इस चैटबॉट का इस्तेमाल सबके लिए मुफ्त रहेगा। कंपनी के इस बयान से लोगों ने कयास लगाने शुरू किए कि भविष्य में चैट जी पी के प्रोग्राम के लिए
ओपन ए आइ पैसे लेने लगे गी। कंपनी ये भी कह चुकी है कि टेस्टिंग और रिसर्च के दौरान सॉफ्टवेर कभी कभार गलत और भ्रामक जानकारियां दे सकता है। कंपनी ने ये भी कहा कि चैट बोर्ड के डेटा हिस्टरी सिर्फ 2021 तक ही सीमित है। गूगल को चुनौती कैसे है? कई लोग इसे इंटरनेट पर जानकारियां जुटाने के लिए गूगल के एकछत्र राज़ को चुनौती बता रहे हैं। आलम यह है कि जीमेल के फाउंडर पॉल बजट तक ने कुछ वक्त पहले कहा था कि 2 साल में यह टूल गूगल को बर्बाद कर सकता है। लेकिन यह सिस्टम अब भी गंभीर गलतियाँ कर रहा है। यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अलवारो मचा दो
नाइस एक न्यूरोसाइंटिस्ट हैं, वो कहते हैं कि यही इसे खास बनाता है क्योंकि यह भाषाओं को समझने में माहिर होता है। इंजीनियर दिन रात इसे स्मार्ट बनाने में लगे हुए हैं। चैट जीपीटी को गलतियाँ स्वीकार करने के लिए भी ट्रेन किया गया है।
अब सवाल यह है कि क्या ये क्रिएटिविटी के लिए खतरा है? जिन नौकरियों में शब्दों और वाक्यों पर निर्भरता है, उनमें खतरे की घंटियां बजनी शुरू हो गई है। जैसे कि पत्रकारिता।
अगर सिस्टम और बेहतर हुआ तो पत्रकारों की नौकरियां कम होंगी और संभवत है एक समय ऐसा भी आ सकता है कि जब उनकी जरूरत की ना पड़े क्योंकि हर आर्टिकल चैटबॉट ही लिख देगा लेकिन आज इस क्षेत्र में सर्वाधिक चिंता है वो है शिक्षा। न्यूयॉर्क में छात्रों को चैट जीपीटी के जरिए अपने असाइनमेंट करने का इतना लोभ हुआ की सारे शहर में आनन फानन में चाट जीपीटी को सभी स्कूलों और सार्वजनिक डिवाइस पर बैन कर दिया गया।
यूके में एग्ज़ैम रेग्युलेटर ऑफ पुआल और शिक्षा विभाग इसका प्रयोग कहीं नकल के लिए ना हो पैनी नजर बनाए हुए हैं। ब्राज़ील की फेडरल यूनिवर्सिटी में एक रिसर्चर यू रियली माँ कहती है कि नई तकनीक छात्रों को साइबोर्ग यानी आधे इंसान और आधे मशीन में बदल देगी।
लीमा कहती हैं कि इस नई तकनीक की मांग है कि अध्यापक भी इसका ठीक से इस्तेमाल करना सीखें।
यह कितना असरदार है? इससे इस बात से समझे कि इस सिस्टम के उपलब्ध होने के 10 दिन के भीतर ही सैन फ्रांसिस्को के एक डिजाइनर ने 2 दिन के भीतर बच्चों के लिए तस्वीरों सहित एक किताब तैयार कर दी थी। डिज़ाइनर ने चैट जीपीटी के अलावा मिड जर्नी नामक प्रोग्राम से भी मदद के जरिए तस्वीरें जुटाई। साउथ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अलवारो मचा दो डायस् कहते हैं कि क्रिएटिविटी के लिए असाधारण टैलेंट की जरूरत होती है, लेकिन एल्गोरिदम की मदद से पैदा की गई चीजों से मनुष्यों में क्रिएटिव होने की प्रवृत्ति कम होगी।

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